जब मैं कहता हूँ तुम्हें प्यार किया करता हूँ
क्या सोचती हो, क्या मैं कहना चाहता हूँ?
माँगता हूँ तेरी जुल्फ़ के घने साये,
घड़ी भर को जिनमे आँख मींच सो जाऊँ
या बाहों के तेरे ये गुदाज-ओ-नर्म घेरे,
गमे-जहाँ को जिनमें भूल कर मैं खो जाऊँ?
जब मैं कहता हूँ….
या बसी बसाई है जो तेरी ये दुनिया,
तेरी रूह के हिस्से जहाँ पे रहते हैं,
वहाँ से खींच कर तुझको किसी जज़ीरे पर,
खुदगर्ज की मानिंद तुझको ले जाऊँ?
जब मैं कहता हूँ….
ये नहीं कि ये ख्वाहिशें नहीं दिल में,
जिंदगी की हकीकत को पर समझता हूँ,
ऐ काश कि तुम भी कभी समझ पातीं,
वो बात जो तुमसे मैं कहना चाहता हूँ.
जब मैं कहता हूँ तुम्हें प्यार किया करता हूँ
क्या सोचती हो, क्या मैं कहना चाहता हूँ?