Penned this yesterday:
कैसा तू पागल है रे, मन.
निठुर प्रेम की जोत जलाता,
चिर पीड़ा को गले लगाता,
जान बूझ कर नित हठपूर्वक,
विरह अग्नि में ह्रदय दहन.
कैसा तू पागल है रे, मन.
छोड़ गए हैं वो तो मुझको,
मृग-तृष्णा भाती पर तुझको,
आस नहीं तू तज पायेगा,
करता रह अब करुण रुदन.
कैसा तू पागल है रे, मन.
सरल नहीं स्मृतियों को खोना,
हो निश्चिन्त घडी भर सोना,
मैंने तुझे तो समझाया था,
कठिन बहुत यह भार वहन,
कैसा तू पागल है रे, मन.
मत भाग किसी तृष्णा के पीछे,
जाग, न रह यूँ अँखियाँ मीचे,
जा अंतर में, अंतरतम में,
हो शांत किया कर आत्म-मिलन,
कैसा तू पागल है रे, मन.
Jo preet lagee sukh kee dehree
Wah peer jaga layee gehree
Bach na paya koi bhee usse
kar le chahe jitne jatan
Kaisa tu pagal hai re, man
Wondeful, thanks.