अशआर उतर पाते नहीं अब कागज़ पे,
सियाही जिंदगी में है, पर कलम में नहीं.
रहते हैं मेहरबां मेरे रकीब पे ज़ियादा ,
कुछ बात उसमें है जो गोया हम में नहीं.
कि तड़प उठे मेरी रूह तक शिद्दत ऐसी,
फक़त तेरे गम में है, और गम में नहीं.
हमने जाने के तेरे बाद कसम खाई है,
फिर करेंगे प्यार पर इस जनम में नहीं.
ज़रा सोच कर हँसना ओ हँसने वाले,
तेरी खुशी में क्या है जो अलम में नहीं.
फिरा करते नहीं यूँ ही तरह दीवानों की,
कू-ए-यार में जो है वो इरम में नहीं.
तू मेरे पास है फिर भी उदास रहता हूँ,
मुझ ही में है कमी तेरे करम में नहीं.
अशआर – Plural of She’r,
सियाही – Darkness, Ink,
रकीब – rival in love,
गोया – As if,
शिद्दत – intensity,
फक़त – Only,
अलम – grief/agony,
कू-ए-यार – path or lane leading to the beloved’s abode.
इरम – Paradise.