कल रात मैथिली शरण गुप्त जी मेरे सपने में आये, और उन्होंने मुझे अपनी ये पंक्तियाँ सुनाईं:
जो भरा नहीं है भावो से, बहती जिसमे रसधार नहीं,
ह्रदय नहीं वह पत्थर है , जिसमे स्वदेस का प्यार नहीं
अब मेरी तो पुरानी आदत है बहस करने की, सो मैंने भी कविता में ही प्रत्युत्तर दिया:
जो भरा ह्रदय है भावों से, दुखता रहता वह घावों से,
उस पार न जाने क्या होगा, पर चैन उसे इस पार नहीं.
🙂