तुम कहो कैसे भुलाऊं
स्मृतियों का उपहार
कामनाएँ कुछ जगी थीं
प्रेम रस से यूँ पगी थीं
ओस की बूंदों से जैसे
पुष्प का श्रृंगार,
क्या हुआ तुम दे न पाए
प्रेम का प्रतिकार
तुम कहो कैसे भुलाऊं
स्मृतियों का उपहार
दो ह्रदय थे एक लय में,
हर्ष पूरित उस समय में
नील नभ में एक दूजे
का किया विस्तार,
और फिर मैंने रचा था
प्रेम का संसार,
तुम कहो कैसे भुलाऊं
स्मृतियों का उपहार
जिन पलों में हाय मैंने
दे दिया हृदय तुम्हें था,
जिन पलों में तुमने भी
था कर लिया स्वीकार,
उन पलों को आज कैसे
दूँ मैं भला बिसार,
तुम कहो कैसे भुलाऊं
स्मृतियों का उपहार